बुधवार, 25 दिसंबर 2024

भारत में इस्लाम का विस्तार कैसे हुआ

क्या इस बात का कोई सबूत है कि मुसलमान हमलावरों ने हिंदुओं को जबरन मुसलमान बनाया था?
©लेखक अजीत कुमार

मुसलमान हमलावरों ने हिंदुओं को जबरन मुसलमान बनाया था लेकिन भारत में मुसलमानो की आबादी बढ़ने का मुख्य कारण घर वापसी का रास्ता ना होना था।

अक्सर यह कहा जाता है कि हिंदुओं की जातपात आधारित सामाजिक संरचना के कारण हिन्दू मुसलमान बन गए, यह बात अंशतः मात्र ही सत्य है, बहुत हद तक अन्य कारण भी जिम्मेदार थे।

सच तो यह है कि जातपात की व्यवस्था के अलावा "ब्राह्मणों" द्वारा घर वापसी के मार्ग को अवरुद्ध करने की नीति वह प्रमुख कारण था जिसके कारण भारत में मुसलमानों की आबादी बढ़ती गई। अगर घर वापसी को पोंगा पंडितों ने स्वीकार किया होता तो आज भारतीय उपमहाद्वीप में इस्लाम का इतना अधिक विस्तार नहीं होता। जो एक बार मुसलमान बन गया वह दुबारा हिंदू नही बन सकता था

एक बार हिन्दू मुसलमान बन गया तो बन गया वापसी असम्भव था पहले एकतरफा रास्ता था गया हुआ वापस नहीं आ सकता था

आर्यसमाज ने शुद्धि आंदोलन चलाया जिसने इस्लाम के प्रसार को रोकने में बड़ी भूमिका निभाई। साथ ही, घर वापसी का मार्ग हिन्दू धर्म में खोलकर लाखों मुसलमानों को पुनः हिन्दू धर्म में दीक्षित किया।

आर्यसमाज से पहले हिंदू धर्म एकतरफा मार्ग था। एक बार यदि कोई हिंदू अपने धर्म को किसी भी कारण से त्याग देता था तो उसे अपने धर्म में वापस आना असंभव था। इसका नतीजा यह हुआ कि जितने भी हिंदू किसी कारण से इस्लाम में परिवर्तित हुए, वे चाहकर भी अपने पुराने धर्म में वापस न आ सके।

लेकिन आर्य समाज के उदय और उसके पुरुषार्थ के कारण इस्लाम का ना केवल वैचारिक स्तर पर जवाब दिया गया बल्कि हिंदू से मुस्लिम बने लोगों को अपने धर्म में वापस लाने का भी आंदोलन चलाया गया जिसे शुद्धि आंदोलन का नाम दिया गया। श्रद्धानन्द सरस्वती, भाई परमानन्द, गुरुदत्त विद्यार्थी, पन्डित लेखराम, चमूपति शास्त्री जैसे आर्यसमाजियों ने इस कार्य में महति भूमिका निभाई।

1946 में बंगाल की धरती नोआखली के भयानक हत्याकांड से लाल हो गई। हज़ारों हिन्दुओं को मौत के घाट उतारा गया। स्त्रियों का सतीत्व लूटा गया और न जाने कितनों को बलात मुसलमान बनाया गया। डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी उस समय अखिल भारतीय शुद्धि सभा के प्रधान थे। इस सारी समस्या पर विचार करने के लिए उन्होंने हिन्दू महासभा भवन में एक बैठक बुलाई। सनातन धर्मियों के प्रतिनिधि के रूप में स्वामी करपात्री जी उपस्थित थे और आर्यसमाज के प्रतिनिधि के रूप में स्वामी विद्यानन्द जी।

डॉ मुखर्जी ने दो प्रश्न विशेष रूप से प्रस्तुत किये-
1. बलात मुसलमान बनाये गये हिन्दुओं को कैसे वापस लाया जाये!
2. हिन्दू महासभा के हाथों में शासन की बागडोर कैसे आये!
पहले प्रश्न के उत्तर में स्वामी करपात्री जी ने कहा कि जो फिर से हिन्दू बनना चाहेगा, उसे एक पाव गौ का गोबर खाना होगा।

आर्य समाज के प्रतिनिधि स्वामी विद्यानन्द ने कहा कि जो यह कहे कि मैं हिन्दू हूँ, उसे हिन्दू मान लिया जाये। उसके लिए न किसी प्रकार गोबर खाने की आवश्यकता है और न किसी प्रकार के संस्कार की।

डॉ मुखर्जी ने स्वामी विद्यानन्द जी की बात का समर्थन करते हुए आपबीती हुई एक अत्यंत मार्मिक घटना सुनाई। उन्होंने कहा कि जब मैं नोआखली गया तो मुझे एक बुढ़िया मिली। उसने मुझे बताया कि मुझे और मेरी तरह अन्य बहनों को एक प्रकार मुसलमान बनाया कि दो मौलवियों ने पगड़ी का एक-एक छोर पकड़ा और हमें तलवार का भय दिखाकर पगड़ी को हाथ से पकड़ने का आदेश दिया। डर के मारे हमने पगड़ी अपने हाथों में ले ली। मौलवियों ने कलमा पढ़ा और हमें मुसलमान मान लिया गया। परन्तु जिस समय वे कलमा पढ़ रहे थे, उस समय मैं मन ही मन राम-राम कह रही थीं। मुझे बताओ कि वह बुढ़िया मुसलमान कब हुई, जो उसे फिर से हिन्दू बनने के लिए पाव गोबर खाने के लिए कहूं। मैं स्वामी विद्यानन्द जी से पूरी तरह सहमत हूँ।

वस्तुतः हिन्दू मुसलमान नहीं बनना चाहते थे। भारत में इस्लामी शासन में जो भी मुसलमान बने उनमे ज्यादातर जजिया के कारण मुसलमान बनें। वे अक्सर ऐसे गरीब लोग थे जिनके पास इतनी अधिक सम्पत्ति नहीं थी कि वह जजिया चुका सके। जजिया चुकाने की अक्षमता के अलावा आतंक, गुलाम बनने का भय, अपनी स्त्रियों के इज्जत की रक्षा, सूफियों के छल कपट और मुस्लिम शासकों के द्वारा लालच देकर लोगों को इस्लाम में परिवर्तित किया गया।

ध्यातव्य है कि इस्लाम दावाह के विचार में विश्वास करता है जिसके अनुसार दूसरे मजहब के लोगों को इस्लाम में लाने पर जन्नत का द्वार खुल जाता है। इस्लाम की दावाह की यह नीति रही है जिसके अंतर्गत दूसरे धर्म वालों को अपने मत में आमंत्रित किया जाता है। इसके लिए येनकेन प्रकारेण उपाय जायज हैं। यह इस्लाम के प्रचार प्रसार में भारत और शेष विश्व में महति भूमिका निभाया है।

इसके अलावा आक्रमण के समय स्त्रियों के शील को भंग कर विरोधी धर्म के लोगों के मनोबल को तोड़ा जाता है। युद्ध में जीती गई स्त्रियां माले गनीमत बन गई। ऐसा भारतीय अतीत में भी हुआ। लाखों स्त्रियों के सत्तित्व शील को भंग किया गया। इसके उपरांत उनके परिवार और पुरुष ने उन्हें त्याग दिया और इनसे जो बच्चे हुए सब मुसलमान बने। यह भी मुसलमान बनने में एक प्रमुख कारण रहा है। इतिहासकार इस विषय पर ज्यादा कलम नहीं चलाते हैं। युद्ध में लोग केवल मारे ही नहीं गए बल्कि ज्यादा पीड़ा तो अबला महिलाओं को झेलना पड़ा। बलात्कार से कौन इनकार कर सकता है? बलात्कार से जन्मे बच्चों का मजहब क्या हुआ?

ऐसे अनेकों प्रमाण हैं। इतिहास गवाह है। मुस्लिम आक्रांताओं के ग्रँथों में ही सारे प्रमाण भरे पड़े हैं-
''तुर्क जब चाहते थे हिन्दुओं को पकड़ लेते, क्रय कर लेते अथवा बेच देते थे और उनकी महिलाओं को सुल्तान और उसके अफसरों या सिपहसालारों के हरम में भेज दिया जाता था। इन यातनाओं से बचने के लिए मस्जिदों के बाहर मुसलमान बनने के लिए (आर्यों) हिन्दुओं की कतारें हमेशा लगी ही रहती थी।(अमीर खुसरु : नूर सिफर : एलियट और डाउसन, खण्ड III पृष्ठ ५६१)
बरनी ने आगे लिखा कि
''घर में काम आने वाली वस्तुएँ जैसे गेहूँ, चावल, घोड़ा और पशु आदि के मूल्य जिस प्रकार निश्चित किये जाते हैं, अलाउद्दीन ने बाजार में हिन्दू दासों के मूल्य भी निश्चित कर दिये। एक हिन्दू लड़के का विक्रय मूल्य २०-३० तन्काह तय किया गया था। दास लड़कों का उनके कार्यक्षमता के आधार पर वर्गीकरण किया जाता था। काम करने वाली लड़कियों का मानक सौंदर्य था। अच्छी दिखने वाली स्वस्थ यौवनशील लड़की का मूल्य २०-४० तन्काह, और सुन्दर उच्च परिवार की लड़की का मूल्य एक हजार से लेकर दो हजार तन्काह होता था।''(बरानी, एलियट और डाउसन,खण्ड III ,हिस्ट्री ऑफखिलजीज़, के. एस. लाल, पृष्ठ ३१३-१५)
अगर कोई कुतुबमीनार जाए तो वहां पर उसे जैन मंदिरों के सारे प्रमाण मिल जाएंगे। कुतुबमीनार में जगह-जगह जैन धर्म के प्रतीक मूर्तियां घंटे इत्यादि बने हुए हैं तो यह सिद्ध होता है कि कुतुबुद्दीन ने यहां के धरोहर को बलपूर्वक नष्ट किया और उसे मस्जिद में कन्वर्ट कर दिया।
भारत में जहां-जहां भी प्राचीन मस्जिद है उन सभी का इतिहास यही है कि वह सब मंदिर थे और उन को ध्वस्त/ अर्द्ध ध्वस्त कर मस्जिद बनाया गया। 

सोमनाथ का इतिहास तो विश्व विख्यात है जिस पर 17 बार गजनी ने आक्रमण किया और मंदिर के खजाने को लूटा गया।

केवल खजाने को नहीं लूटा गया यहां की स्त्रियों का अपहरण किया गया उन्हें गुलामों की तरह बेचा गया क्योंकि इस्लाम में गुलाम को बेचना खरीदना जायज है। इस्लाम के रसूल के जीवनी से भी ज्ञात है कि उनका एक पालित पुत्र जायद जिसकी बीवी से जैनब से प्रोफेट ने निकाह किया वह भी एक दास था। गुलाम बनो, मरो या मुसलमान बनो यह चुनाव करना था। बेचारे क्या करते। बहुत सारे मजबूर हिन्दू मुसलमान बन गए।

इस्लाम का इतिहास ऐसे भी बलप्रयोग के उदाहरणों से भरा पड़ा है!अलाउद्दीन खिलजी, बाबर, हुमायूं, जहांगीर आदि इन सभी के अरबी फारसी दस्तावेजों के आधार पर जो इतिहास है उससे ही प्रमाणित होता है कि उन्होंने बुतशिकन मज़हबी उन्माद में जगह जगह दूसरे मत के पूजा स्थलों को नष्ट किया।

पुस्तक के अलावा पुरातात्विक साक्ष्य उपलब्ध है जिनसे यह सारी बातें प्रमाणित होती है। इसको कोई झुठला नहीं सकता है।जो वामपंथी मीडिया इस सत्य झूठलाने की कोशिश की है उसे मुंह की खानी पड़ी है।

उदाहरण के लिए, रामजन्म भूमि के विवाद में भी ऐसा ही हुआ और यह स्पष्ट है केवल हिंदुओं का ही नहीं पूरे विश्व में जगह-जगह मुसलमानों ने दूसरे के धर्म स्थलों को नष्ट किया या उन्हें बदलकर मस्जिद बना दिया।

उदाहरण के लिए, तुर्की के इस्तानबुल नगर में स्थित छठी शताब्दी में निर्मित हगिया सोफिया चर्च, जो मूलतः एक पूर्वी ऑर्थोडॉक्स चर्च था। बाद में यह रोमन कैथलिक कैथेड्रल, फिर मस्जिद, फिर संग्रहालय और पुनः मस्जिद में बदल दिया गया। इसका निर्माण रोमन सम्राट जस्टिनियन प्रथम के काल में सन ५३७ ई में हुआ था।हागिया सोफिया चर्च को पुनः वर्तमान राष्ट्रपति तैईप एरडोगन ने बेशर्मी से मस्जिद बना दिया गया है। यह है वर्तमान साक्ष्य! अतीत तो इससे भी अमानवीय बेशर्मी से भरा है!!

इसके अलावा राशुद्दीन खलीफा उमर के शासनकाल में उमर के दस्तावेज से भी प्रमाणित होता है कि गैर मुस्लिमों जैसे ईसाइयों या यहूदियों के साथ अमानवीय असमानतापूर्ण शर्ते रखी गई थी।
गैर इस्लामी मजहब के लोगों के धार्मिक हक को छीन लिया गया।

ईसाइयों और यहूदियों में कोई जातपात नहीं था। फिर भी बलपूर्वक उनको ऐसी शर्तों के कारण मुसलमान बनने को बाध्य किया गया। अतः यह कहना कि केवल जातपात के कारण हिन्दू मुसलमान बन गए, स्वीकार नहीं किया जा सकता है। अगर जातपात से मुक्ति के लिए हिन्दू इस्लाम ग्रहण किए होते तो आज भारत में मुस्लिम समाज के लगभग ९० प्रतिशत मुसलमान जो पसमंदा पिछड़े हैं जातपात की बेड़ियों से पीड़ित नही होते।

सबसे बड़ी बात यह है कि इस्लाम में आरंभ से ही नस्लवाद और जातपात की जड़े गहरी रही हैं जो भारत के जातपात से भी ज्यादा घातक हैं। फैयाज अहमद फैजी जो पसमंदा आंदोलन के एक प्रमुख कार्यकर्ता हैं वे इस विषय पर लगातार लिखते बोलते रहे हैं।

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