संस्कृत साहित्य के महान कवि कालिदास ने अनेक श्रृंगार रस प्रधान काव्यों की रचना की है। रघुवंश में जहाँ उन्होंने श्रीराम के कुल रघु कुल का वर्णन किया है तो अभिज्ञानशाकुन्तल में राजा दुष्यंत और शकुंतला के प्रेम का वर्णन किया है।
महाकवि कालिदास का रचनाकाल और जन्मकाल अज्ञात है। इतिहास में दो व्यक्ति कालिदास के नांम से माने गये हैं। एक का जन्म राजा भोज के काल में हुआ और दूसरे का शुंग वंश के काल में।
रचना की प्रकृति से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि कालिदास का जन्म वाममार्ग के प्रसार युग में हुआ था और शिव तन्त्रमत के समर्थक थे।
महाकवि कालिदास के महाकाव्य कुमारसम्भवम में विभिन्न सर्गों में अलग अलग विषयों का सुंदर वर्णन है जैसे पार्वती का शिव को प्राप्त करने के लिए तप, शिव द्वारा कामदेव को नष्ट करना, पार्वती के तप से प्रसन्न होकर शिव द्वारा उसका वरण, पुनः कामदेव का जीवित होना, शिव पार्वती रमण और कार्तिकेय का जन्म इत्यादि। शिव और पार्वती के पुत्र कार्तिकेय के जन्म का वर्णन महाकाव्य का मुख्य उद्देश्य है। अनेक सर्गों में वर्णित यह महाकाव्य अपने शृंगार रस के लिए विख्यात है।
कुमारसम्भवम के आठवें सर्ग में वाममार्गी कालिदास ने शिव पार्वती की रति क्रीडा का विस्तार से वर्णन किया है।
कुछ लोग कहते हैं कि आठवें सर्ग मे शिवपार्वती के संभोग का वर्णन करने के कारण कालिदास को कुष्ठ हो गया और वे लिख न सके। एक मत यह भी है कि उनका संभोगवर्णन जनमानस को रुचि नहीं इसलिए उन्होंने आगे नहीं लिखा। कालिदास-प्रणीत कुमारसम्भव के आठवें सर्ग में कवि ने शिव व पार्वती की विवाहोपरान्त कामक्रीडाओं का काफी खुलकर वर्णन किया गया है। परम्परा से यह प्रसिद्ध है कि कालिदास के इस वर्णन से पार्वती जी रुष्ट हो गई और इसे माता–पिता के नग्न शृंगार-चित्रण के समान मानते हुए कवि को शाप दिया, जिसके कारण कालिदास अपनी कवित्व-शक्ति से वंचित हो गए व काव्य को पूरा नहीं कर सके। एक मान्यता यह भी है कि शिव-पार्वती के संभोग-वर्णन को अनुचित मानते हुए तत्कालीन सहृदयों ने कालिदास की कटु आलोचना की, जिससे हतोत्साहित होकर उन्होंने काव्य को अधूरा ही छो़ड़ दिया। संभवतः इसलिए कवि काव्य के नामकरण के अनुसार इसमें कुमार कार्तिकेय के जन्म के प्रसंग का वर्णन नहीं कर सका।
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फुटनोट
[1] कुमारसंभवम् - विकिपीडिया
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