All our knowledge begins with the senses, proceeds then to the understanding, and ends with reason. There is nothing higher than reason. --- Immanuel Kant
मनुष्य सभी प्राणियों में श्रेष्ठ माना गया है। आखिर क्यों? क्या पशु की तुलना में मनुष्य का हृदय ज्यादा कोमल है? इस कारण अथवा मनुष्य की मानसिक शक्ति सभी अन्य प्राणियों से श्रेष्ठ होने के कारण। अवश्य ही मनुष्य का मन सभी प्राणियों से श्रेष्ठ है। यही कारण है कि उसे मनुष्य कहा गया। सामान्यतः जीवन के प्राय सभी कार्य क्षेत्रों में मन ही व्यक्ति की सापेक्षिक क्षमता का निर्धारण करता है।
मनुष्य सभी प्राणियों में श्रेष्ठ माना गया है। आखिर क्यों? क्या पशु की तुलना में मनुष्य का हृदय ज्यादा कोमल है? इस कारण अथवा मनुष्य की मानसिक शक्ति सभी अन्य प्राणियों से श्रेष्ठ होने के कारण। अवश्य ही मनुष्य का मन सभी प्राणियों से श्रेष्ठ है। यही कारण है कि उसे मनुष्य कहा गया। सामान्यतः जीवन के प्राय सभी कार्य क्षेत्रों में मन ही व्यक्ति की सापेक्षिक क्षमता का निर्धारण करता है।
किसी भी पुस्तक को भावनात्मक आधार पर जीवन का आधार मानने का क्या औचित्य है, जब तक उसके पीछे तर्क का आधार नहीं हो। तर्क मानव मन की शक्ति है, कह सकते हैं कि जीवन का वरदान है।
जीवन में किसी भी चीज का मूल्यांकन तर्क के आधार पर ही किया जाता है और करना भी चाहिए। यही मनुष्य होने का अर्थ भी है। विश्वास सदैव तर्क के धरातल पर स्थापित होना चाहिए। अगर ऐसा नही हो तो अन्धविश्वास बन जाता है जो व्यक्ति और समाज दोनों के लिए घातक है।
अन्धविश्वास और विश्वास में फर्क करने की कसौटी क्या है? क्या सभी विश्वासों को तर्क के तराजू पर तौला जा सकता है? उदाहरण के लिए, क्या ईश्वर पर विश्वास तर्क के आधार पर किया जा सकता है? सभी यहीं कहेंगे कि ईश्वर के अस्तित्व को तर्क के आधार पर प्रणानित नहीं किया जा सकता। अवश्य ही यह सत्य है। फिर विश्वास और अन्धविश्वास में कैसे फर्क करेंगे? इसका उत्तर यह है कि यद्यपि धर्म या मज़हब के तत्व को तर्क से प्रमाणित नहीं किया जा सकता परन्तु ऐसे तत्व तर्कविरुद्ध नहीं हो सकते है। धर्म का तत्व तर्कातीत अर्थात तर्क से परे हो सकता है। इसी कारण ईश्वर को अचिंतन्य भी कहा गया है। कॉन्टिय दर्शन की जिन्हें समझ है वे यही कह सकते हैं कि किसी भी सांसारिक सत्ता के निरपेक्ष स्वरुप Things in Itself के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता। अतः कुछ बातें मानव मन की सीमा के परे है परंतु ऐसी बाते जो तर्क की सीमा से परे हैं इसे मन ही तर्क से सिद्ध कर कर लेता है कि यह तर्कातीत है परन्तु ध्यान देने की बात है कि तर्क के विपरीत बातों के प्रति मन ही विद्रोह कर देता है। तर्क के विपरीत बातों को मानना ही अंधविश्वास है। तर्क विरोधी बात धर्म विरोधी है। अगर किसी पुस्तक में तर्क विरुद्ध बातें हों तो ऐसी पुस्तक का अनुसरण करने से अन्धविश्वास में वृद्धि और विज्ञान में बाधा होती है जिससे समाज में सुख शांति की कमी होती है।
विश्व में ईसाई और इस्लाम मत जनसंख्या की दृष्टि से बहुतायत हैं। हिंदुओं की संख्या इनके तुलना में कम है। मुख्य बात यह है कि ये सभी अपने धर्म को ईश्वरीय पुस्तक पर स्थापित करते हैं। यहूदी तौरात अर्थात तोरह को, ईसाई बाइबिल को, मुस्लिम कुरान को एवम् हिन्दू वेद, पुराण और गीता को अपनी धार्मिक पुस्तक मानते हैं। उपरोक्त कसौटी पर किसी भी पुस्तक के तथ्य की सत्यता की जाँच करे, दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। सत्य कभी भी तर्क विरुद्ध हो ही नहीं सकता। अगर कोई व्यक्ति या पुस्तक तर्क विरुद्ध बातों का समर्थन करे तो ऐसी बातों का समर्थन अल्प बुद्धि जन ही कर सकते हैं। मनुर्भव। अर्थात मननशील प्राणी बनो।
© अजीत कुमार, सर्वाधिकार सुरक्षित।
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