हिन्दू मुस्लिम एकता की बात हमेशा गांधी, स्वामी विवेकानंद जैसे राजनीतिक धार्मिक नेताओं ने की।
हिन्दू मुस्लिम एकता के लिए गांधी का आडम्बर जगजाहिर है। उनके शब्दों में,
हिंदुओं को मुसलमानों के खिलाफ गुस्सा नहीं रखना चाहिए, भले ही मुसलमान हम सभी को नष्ट करना और मारना चाहते हों। हमें मौत का बहादुरी से सामना करना चाहिए। अगर मुसलमान सभी हिंदुओं को मारकर अपना शासन स्थापित करते हैं, तो हम एक नए भारत की शुरुआत करेंगे।
स्वामी विवेकानंद भी कम नहीं थे गांधी से। अन्तर बस इतना है कि वह अपने वक्तव्य श्रोताओं को ध्यान में रखकर करते थे। श्रोताओं को खुश करने की कला ही उनकी वक्तृत्व कला है, इस बात को तथाकथित सेकुलर कभी प्रकाशित नहीं करते हैं। वे उनको हिन्दू हृदय सम्राट घोषित करने के लिए उनके वक्तव्यों की छंटनी करते हैं और सेलेक्टिव नैरेटिव में सफलता के कारण स्वामी विवेकानंद एक महान हिंदूवादी संन्यासी माने जाते हैं। विचारणीय है कि उन्होंने सन्यास आश्रम का कितना पालन किया? भारत की जनता को स्वामी विवेकानंद और गांधी के बारे में पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।
हिन्दू मुस्लिम एकता के उदाहरण के लिए उनके पत्र व्यवहार का अध्ययन आवश्यक है। हिंदू मुस्लिम एकता और भारत के भविष्य के लिए आरएसएस के आराध्य देव स्वामी विवेकानंद की दृष्टि उनके लिखे पत्र में स्पष्ट है। एक पत्र इस सम्बन्ध में उदधृत है-
(नैनी ताल के मोहम्मद सरफराज हुसैन को लिखा गया)
अल्मोड़ा,
10 जून, 1898।
मेरे प्यारे दोस्त,
मैं आपके पत्र की बहुत सराहना करता हूं और यह जानकर अत्यंत प्रसन्न हूं कि प्रभु चुपचाप हमारी मातृभूमि के लिए अद्भुत चीजें तैयार कर रहे हैं।
चाहे हम इसे वेदांतवाद कहें या कोई भी वाद, सच्चाई यह है कि अद्वैतवाद धर्म और विचार का अंतिम शब्द है और एकमात्र स्थिति है जहां से सभी धर्मों और संप्रदायों को प्रेम से देखा जा सकता है। मेरा मानना है कि यह भविष्य की प्रबुद्ध मानवता का धर्म है। हिंदुओं को अन्य जातियों की तुलना में इस पर पहले पहुंचने का श्रेय मिल सकता है, वे हिब्रू या अरब की तुलना में एक पुरानी जाति हैं; फिर भी व्यावहारिक अद्वैतवाद, जो सभी मानव जाति को अपनी आत्मा के रूप में देखता है और व्यवहार करता है, सार्वभौमिक रूप से हिंदुओं के बीच कभी विकसित नहीं हुआ था।
दूसरी ओर, मेरा अनुभव यह है कि अगर कभी कोई धर्म इस समानता के लिए सराहनीय तरीके से संपर्क करता है, तो वह इस्लाम और इस्लाम ही है।
इसलिए मेरा दृढ़ विश्वास है कि व्यावहारिक इस्लाम की सहायता के बिना, वेदांतवाद के सिद्धांत, चाहे वे कितने ही अच्छे और अद्भुत हों, मानव जाति के विशाल जन के लिए पूरी तरह से मूल्यहीन हैं। हम मानव जाति को उस स्थान पर ले जाना चाहते हैं जहां न वेद है, न बाइबिल है, न कुरान है; फिर भी यह वेदों, बाइबिल और कुरान के सामंजस्य के द्वारा किया जाना है। मानव जाति को सिखाया जाना चाहिए कि धर्म धर्म की विविध अभिव्यक्तियाँ हैं, जो कि एकता है, ताकि प्रत्येक उस मार्ग को चुन सके जो उसके लिए सबसे उपयुक्त हो।
हमारी अपनी मातृभूमि के लिए दो महान प्रणालियों, हिंदू धर्म और इस्लाम का एक जंक्शन - वेदांत मस्तिष्क और इस्लाम शरीर - एकमात्र आशा है।
मैं अपने मन की आंखों में वेदांती मन और इस्लामी शरीर के साथ, इस अराजकता और संघर्ष से, शानदार और अजेय, भविष्य के परिपूर्ण भारत को देख रहा हूं।
हमेशा प्रार्थना करते हैं कि भगवान आपको मानव जाति और विशेष रूप से हमारी गरीब, गरीब मातृभूमि की मदद के लिए एक महान साधन बना सकते हैं।
तुम्हारा प्यार से,
विवेकानंद।
विवेकानंद से इससे ज्यादा उम्मीद कर भी नहीं सकता। जो व्यक्ति इस्लाम का भक्त हो वह मांसाहारी अवश्य होना चाहिए। मांसाहारी, धूम्रपान प्रेमी, पश्चिमी शिक्षा और भाषा के समर्थक विवेकानंद और उनका परिवार तो शुरू से ही इस्लाम को पसंद करते थे। उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस भी इस्लाम प्रेमी थे। इस्लाम प्रेम के कारण रामकृष्ण ने कुछ समय तक इस्लाम मजहब को भी अपनाया और गौमांस भी खाया। भला चेला कैसे गुरु से पीछे रहता। उसने भी इस्लामी शरीर और वेदान्ती आत्मा के बिना भारत की तरक्की अवरुद्ध मान लिया।
बंगालियों ने स्वामी विवेकानंद के वचनों का अनुपालन कर पश्चिम बंगाल को नई ऊंचाई दी है जिसका असर मोमिता बनर्जी के शासन में भी दिखाई दे रहा है। वहाँ हिन्दू मुस्लिम भाईचारे की खबर सबको मालूम हैं।
लेकिन कुछ लोग मानते हैं कि अंधकार और प्रकाश कब एक हुए हैं? ऐसे लोगों के अनुसार हिन्दू मुस्लिम भाईचारे के नाम पर हिन्दू मुस्लिम का चारा बनता रहा है। इस सम्बंध में डॉक्टर अम्बेडकर मुसलमान समाज और इस्लाम को भारत के विरुद्ध देखते हैं।
अम्बेडकर बिना किसी लाग लपेट के सीधे कहते हैं कि मुसलमानों की नजर में हिंदू काफिर है। क़ाफ़िर नीच होते हैं वे कभी सम्मान के पात्र नहीं हो सकता हैं अतः मुस्लिम कभी भी हिंदुओं के शासन में रहना नहीं पसंद करेंगे। काफ़िर के साथ रहना दारूल हर्ब है, युद्ध क्षेत्र है इत्यादि...
दोनों पक्ष दिखा दिया। बाकी खुद निर्णय करें।
विकृत वेदभाष्य लिखने वाले मैक्स मूलर के समर्थक स्वामी विवेकानंद ने कभी वेदपाठ नहीं किया था। अंग्रेजी भाषा, पोशाक, मांस मछली और सिगरेट के शौकीन स्वामी जी को प्रसिद्ध इसलिए किया गया था ताकि भारत में सेकुलरिज्म की नींव अच्छी तरह स्थापित हो सके। आरएसएस ने इनको अपना सबसे बड़ा गुरु मानकर जन-जन में प्रचारित प्रसारित किया जबकि अरविंद घोष और दूसरे भी बड़े-बड़े महान ऋषि मुनि इस देश में हुए हैं। स्वामी विवेकानंद को महान साबित करने के पीछे सबसे बड़ा कारण राजनीतिक था सेकुलरिज्म की नींव मजबूत करना।
© अजीत कुमार, सर्वाधिकार सुरक्षित।
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