शनिवार, 26 अक्टूबर 2024

वेद में हजरत मोहम्मद

वेद में हजरत मोहम्मद के नाम होने का प्रपन्च बहुत समय से चल रहा है। इसके पीछे मुख्य कारण यह है कि यह सर्वमान्य तथ्य है कि वेद संसार की सर्वाधिक प्राचीन ग्रन्थ है। अब यदि येनकेन प्रकारेण/ किसी तरह से उसमें हजरत मोहम्मद का नाम प्रमाणित कर दिया जाये तो सर्वफल सिद्धि हो जाये।


ऋषि दयानन्द सरस्वती कृत सत्यार्थ प्रकाश ग्रन्थ की रचना अत्यंत ही अद्भुत है। इस ग्रन्थ में अतीत और भविष्य दोनों काल में मत मतान्तरों द्वारा सामान्य जन को दिग्भ्रमित करने वाले कारनामों- छल व पाखंड का खंडन है।

वर्तमान समय में यदाकदा यह प्रसंग प्रचारित प्रसारित किया जाता है कि वेद में हजरत मोहम्मद का नाम है। इस कपट का प्रयोग एक अस्त्र की भांति समय समय पर हिन्दू धर्मांतरण के लिए किया गया है।

इस विषय पर स्वामी दयानंद सरस्वती ने सत्यार्थ प्रकाश ग्रन्थ के चौदहवें समुल्लास में इस झूठ व कपट का पर्दाफाश किया है। इसमें एक अल्लोपनिषद नामक ग्रन्थ का उल्लेख है जिसमें हजरत मोहम्मद का नाम है, बताया गया है।

अल्लोपनिषद:—
यह धूर्तो का बनाया उपनिषद है जिसे हिन्दुओं को भर्मजाल में डालने के लिए बनाया गया था। यह सिद्ध करने के लिए कि हजरत मोहम्मद का नाम उपनिषद में है।


(प्रश्न) क्या तुम ने सब अथर्ववेद देखा है ? यदि देखा है तो अल्लोपनिषद् देखो। यह साक्षात् उसमें लिखी है। फिर क्यों कहते हो कि अथर्ववेद में मुसलमानों का नाम निशान भी नहीं है।

अथाल्लोपनिषदं व्याख्यास्यामः
अस्मांल्लां इल्ले मित्रवरुणा दिव्यानि धत्ते।
इल्लल्ले वरुणो राजा पुनर्द्ददु 
ह या मित्रे इल्लां इल्लल्ले इल्लां वरुणो मित्रस्तेजस्काम।।१।।
होतारमिन्द्रो होतारमिन्द्र महासुरिन्द्रा 
अल्लो ज्येष्ठं श्रेष्ठं परमं पूर्णं ब्रह्माणं अल्लाम्।।२।।
अल्लोरसूलमहामदरकबरस्य अल्लो अल्लाम्।।३।।
आदल्लाबूकमेककम्।। अल्लाबूक निखातकम्।।४।।
अल्लो यज्ञेन हुतहुत्वा। अल्ला सूर्यचन्द्रसर्वनक्षत्र ।।५।।
अल्ला ऋषीणां सर्वदिव्याँ इन्द्राय पूर्वं माया परममन्तरिक्षा ।।६।।
अल्ल पृथिव्या अन्तरिक्षं विश्वरूपम्।।७।।
इल्लां कबर इल्लां कबर इल्लाँ इल्लल्लेति इल्लल्ला ।।८।।
ओम् अल्ला इल्लल्ला अनादिस्वरूपाय अथर्वणा श्यामा हुं ह्रीं
जनानपशूनसिद्धान् जलचरान् अदृष्टं कुरु कुरु फट्।।९।।
असुरसंहारिणी हुं ह्रीं अल्लोरसूलमहमदरकबरस्य अल्लो अल्लाम्
इल्लल्लेति इल्लल्ला ।।१०।।
इत्यल्लोपनिषत् समाप्ता।।


जो इस में प्रत्यक्ष मुहम्मद साहब रसूल लिखा है इस से सिद्ध होता है कि मुसलमानों का मत वेदमूलक है।

(उत्तर) यदि तुम ने अथर्ववेद न देखा हो तो हमारे पास आओ आदि से पूर्त्ति तक देखो । अथवा जिस किसी अथर्ववेदी के पास बीस काण्डयुक्त मन्त्रसंहिता अथर्ववेद को देख लो। कहीं तुम्हारे पैगम्बर साहब का नाम वा मत का निशान न देखोगे। और जो यह अल्लोपनिषद् है वह न अथर्ववेद में, न उस के गोपथ ब्राह्मण वा किसी शाखा में है।

यह तो अकबरशाह के समय में अनुमान है कि किसी ने बनाई है। इस का बनाने वाला कुछ अर्बी और कुछ संस्कृत भी पढ़ा हुआ दीखता है क्योंकि इस में अरबी और संस्कृत के पद लिखे हुए दीखते हैं। देखो! (अस्माल्लां इल्ले मित्रवरुणा दिव्यानि धत्ते) इत्यादि में जो कि दश अंक में लिखा है, जैसे-इस में (अस्माल्लां और इल्ले) अर्बी और (मित्रवरुणा दिव्यानि धत्ते) यह संस्कृत पद लिखे हैं वैसे ही सर्वत्र देखने में आने से किसी संस्कृत और अर्बी के पढ़े हुए ने बनाई है। यदि इस का अर्थ देखा जाता है तो यह कृत्रिम अयुक्त वेद और व्याकरण रीति से विरुद्ध है। जैसी यह उपनिषद् बनाई है, वैसी बहुत सी उपनिषदें मतमतान्तर वाले पक्षपातियों ने बना ली हैं। जैसी कि स्वरोपनिषद्, नृसिहतापनी, रामतापनी, गोपालतापनी बहुत सी बना ली हैं।

यदि वेद में मोहम्मद और कबीर का नाम हो तो ये क्यों नहीं वेद को ही सत्य ग्रन्थ मान कर उसी को स्वीकार कर लेते। अन्यथा मतलब तो कुछ और ही निकलता है। वेद को सत्य मानने से तो सारा खेल ही बिगड़ने का डर है।


© अजीत कुमार, सर्वाधिकार सुरक्षित।

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