जितने भी अंधविश्वास फैलाने वाले बाबा, तांत्रिक, मुल्ला, मौलाना या तथाकथित पैगम्बर व धर्मगुरु होते हैं, उन्होंने हमेशा अंधविश्वास का फायदा उठाया है और इसके लिए चमत्कार मुख्य हथियार है। बिना चमत्कार दिखाएं समाज में अंधविश्वास को फैलाना और लोगों पर अपने प्रभाव को कायम करना संभव नहीं है।
इसी रास्ते को कई तथाकथित साधुसंत और पैगम्बर ने भी अपनाया। कोई जन्नत जा कर नबियों और अल्लाह से मिल आता है तो कोई काली का दर्शन कर लेता है। उदाहरण के लिए स्वामी विवेकानंद के बारे में भी कुछ इस तरह का प्रचार किया गया है कि उनके गुरु रामकृष्ण और स्वामी विवेकानंद को काली का दर्शन हुआ है। यह वह तरीका है जिसको अपना कर कोई समाज या समुदाय में लोक प्रसिद्ध होता है। इसके कारण लोगों के मन में विवेकानंद के प्रति गहरी श्रद्धाभक्ति भाव जगा।
ईश्वर, काली, शिव या जो भी नाम ले उस परमात्मा का, वह इंद्रिय से अतीत पराशक्ति है और यह इंद्रिय या नेत्र का विषय नहीं है, यही शास्त्रोक्त वचन है।
फिर भला कोई कैसे काली या परमात्मा का दर्शन कर सकता है? परमात्मा नेत्र का विषय ही नहीं है।
कोई व्यक्ति अपनी आत्मा का दर्शन तो कर ही नहीं सकता तो फिर परमात्मा का दर्शन कैसे कर लेगा क्योंकि आत्मा और परमात्मा दृश्य नहीं है कि जिसका दर्शन हो। वह द्रष्टा है। जो आधार आधेय का सम्बंध है वही दृश्य और द्रष्टा का।
कोई भी दृष्टा आत्मा और परमात्मा दृश्य नहीं बन सकता और आंखों जैसे आंख नहीं देखता वैसे ही आत्मा को आत्मा नहीं देख सकती। आत्मा द्रष्टा है ना कि दृश्य।
तो भगवान को देखना शास्त्रोक्त दृष्टि से गलत है और धर्मविरुद्ध भी है। यह लोगों को अंधविश्वासी बनाने और सच्चे धर्म से भटकाने के सिवा और कुछ नहीं है।
ईश्वर दर्शन पतंजलि जैसे ऋषि मुनियों के योग शास्त्रोक्त वचनों का अनुगमन करने से सम्भव है। आँखों से देखना कदापि सम्भव नहीं है।
~लेखक अजीत कुमार
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