वासना
जीवन के बीस वर्ष
नींद में खोया था।
उलटी पुलटी बातों में
खट्टे मीठे ख्वाबों में
स्वयम को खोया था।
अचानक दृग खुल गया
समाँ बदल गई
दृश्य हुआ अदृश्य
अदृश्य हुआ दृश्य
गति बन गई यती
और समय ठहर गई।
मैं न था न था कोई और
प्रकाश मात्र था
अनंत के एक छोर से
चहूँ ओर
दृश्य अदृश्य में भेद न समझा
समझा एक्य स्वरूप
एक विविध बन चहक रहा
एकत्व सर्वसार सम्पूर्ण।
(अतीत के झरोखों से)
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