ईश्वर स्तुति
कहाँ से करूं गुणगान
कहाँ तक
तेरा हे भगवान
सब गुणों से परे रह कर
फिर भी है तू महान।
सबके मन को जानने वाले
तू है अन्तर्यामी
सबके चित्त में बसने वाले
तू है सर्वज्ञानी
सर्वात्मा विश्वात्मा परमात्मा नाम
सच्चिदानंद आदि नामों से
तू ही है विख्यात।
जगत तिमिर के हरण हेतु को
सूरज चाँद बनाया
माया रचकर एक रूप को
विविध रूप दर्शाया।
पुष्पों से धरती को तूने
गुलशन सा सजाया
प्राणों को वाणी दे
तूने प्रेमगीत है गाया।
प्रकृति जीव में प्रकट हो रहा
तेरे तेज का अंश
अनन्त तेज से अनंत गुना है
तेरा तेज अनंत।
कहाँ से करूं गुणगान कहाँ तक
तेरा हे भगवान।
सब गुणों से परे रह कर
फिर भी है तू महान।
(अतीत के झरोखों से)
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