क्यों नहीं
जब दिन भर
लोगों से बातें करते करते
थक जाते हो
और कोला से
प्यास नहीं बुझती
तब खजूर का पानी पी कर
किसी पेड़ तले बैठ कर
खुद से बतियाते क्यों नहीं?
जब सूरज पूरब से चलते चलते
थक कर
पश्चिम में सो जाता है
तब तुम नाईट ड्यूटी पर जाते हो
पंछी की भांति
नीड़ो में बैठ कर
चहचहाते क्यों नहीं ?
जब सारा जग
रात्रि की कोख में
सो जाता है
और खामोश चाँद
मेंघों के झरोखों से
झांकता है
तब तुम इसे
निहारते क्यों नहीं ?
जब एक एक कर
सारे बिछड़ जायेंगे
मर जायेंगे
और संसार भी मर जायेगा
तब तुम कहाँ होगे
ये सोंचते क्यों नहीं ?
जब मन लगातार
नदी की तरह
बहता रहता है
और ख्याल थमते नहीं
तब मन को बांध कर
शक्ति उत्पन्न
करते क्यों नहीं ?
जब सोचते सोचते सिरदर्द हो
पर सोच का अंत न हो
तब सोचते क्यों हैं
ऐसा सोचते क्यों नहीं ?
श्रीशेष
(अतीत के झरोखों से)
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