चोर मचाये शोर
सच्ची बात शूल सी,
झूठी बात फूल सी
लगती है समाज को।
हर बात जब पैसे से तुलती है,
तो क्या रह गया जज्बात को।
दौलत का बाज़ार है
जिसकी माँग, उसका राज है
तराजू के पलड़े पर
शराब है शबाब है।
समाज में आधुनिकता का जोर है
सफलता का अर्थ शोर है
ईमानदारी बहुत कमजोर है
दो नंबर का धंधा बेजोड़ है
अब चंद्रोदय का अर्थ भोर है।
सफलता चाहिए तो
इंसान की हड्डियों का
सूरमा बना दो
उन्हें आँखों में लगा कर
खुद को भरमा लो
और वीर बहादूर हो,
तो बहू बेटियों को नचवा लो
बिना मेहनत मजूरी के
लाख करोड़ कमा लो।
भगवान अब मर चूका है,
किससे डर रहे हो ?
नैतिकता लूट चुकी है
अब किसे ढँक रहे हो ?
विज्ञान के मंच पर सर्वत्र तर्क है
भावना बेचारी
कमजोर लड़की सी
दम तोड़ रही है।
तर्क और भाव का मैथुन क्यों करें ?
उस पुरातन सृष्टी की लीक क्यों पीटे ?
ज़माना स्वमैथुन का है,
तर्क को तर्क से मिलने दो
और भावना को एकांत में मरने दो।
(अतीत के झरोखों से)
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