गुरुवार, 3 जनवरी 2019

ठहर रे मानव

जरा तू सोच
- by Shrishesh
ठहर रे मानव जरा तू सोच । जिस गली से तू गुजर रहा है , वहाँ विध्वंस की कली कुसुमित होकर फूल फल रहा है । कागज़ का फूल है, सच्चा फूल समझना तुम्हारी भूल है । कागज़ के फूल नहीं सजाते हैं चमन को, दूर से लुभाता है मन को भरमाता है, गंधहीन फूल है गंधहीन बनाता है । देख आगे, देख पीछे आगे और पीछे के अंतर को देख अनंत पथ के राही, अनंत और अनंत के अंतर को देख । चाहता है सुख और दुःख हो कोसो दूर तो सीख ले यह सरल गूर सुख में मणि बन, दुःख में जड़ी बन । भौतिकता और अध्यात्म की योजक कड़ी बन । क्षण क्षण के अन्तर में भाव बड़ी कर जीवन को जी कर मृत्यु वरण कर । श्रीशेष (अतीत के झरोखों से)
© अजीत कुमार, सर्वाधिकार सुरक्षित।

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