जरा तू सोच
ठहर रे मानव
जरा तू सोच ।
जिस गली से तू
गुजर रहा है ,
वहाँ विध्वंस की कली
कुसुमित होकर
फूल फल रहा है ।
कागज़ का फूल है,
सच्चा फूल समझना
तुम्हारी भूल है ।
कागज़ के फूल नहीं
सजाते हैं चमन को,
दूर से लुभाता है
मन को भरमाता है,
गंधहीन फूल है
गंधहीन बनाता है ।
देख आगे, देख पीछे
आगे और पीछे के
अंतर को देख
अनंत पथ के राही,
अनंत और अनंत के
अंतर को देख ।
चाहता है सुख
और दुःख हो कोसो दूर
तो सीख ले यह सरल गूर
सुख में मणि बन,
दुःख में जड़ी बन ।
भौतिकता और अध्यात्म की
योजक कड़ी बन ।
क्षण क्षण के अन्तर में
भाव बड़ी कर
जीवन को जी कर
मृत्यु वरण कर ।
श्रीशेष
(अतीत के झरोखों से)
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