मंगलवार, 12 मई 2020

श्रमण परंपरा

अजीत कुमार १ नवम्बर २०१९

श्रमण परंपरा का आरंभ जैन और बौद्ध संप्रदाय से शुरू हुआ। श्रमण परंपरा एक अवैदिक परंपरा है। यह वेदों को परम प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं करता। यह मानता है कि व्यक्ति अपने श्रम के बल पर मोक्ष की प्राप्ति करता है न की वेद के ज्ञान के आधार पर। श्रमण परंपरा ईश्वर में विश्वास नहीं करता। यह एक नास्तिक मत है जिसका प्रचार प्रसार जैन और बौद्ध संप्रदाय के उदय के बाद हुआ।
श्रमण परंपरा के मानने वालों का यह विश्वास है कि व्यक्ति कर्म करके अपने श्रम द्वारा धीरे-धीरे ज्ञान को बढ़ाता है और यह ज्ञान उसके मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करता है।
इस तरीके से देखा जाए तो श्रमण परंपरा कर्म को प्रधान मानता है और ज्ञान को अनुभव से उत्पन्न मानता है ना की परम सत्य को वेद से अर्थात परमात्मा से उत्पन्न मानता है।
श्रमण परंपरा के विरोध में ब्राह्मण परंपरा है जो वेद को परम सत्य मानता है और सत्य ज्ञान के बिना कर्म को दोषपूर्ण स्वीकार करता है।
ब्राह्मण परंपरा के अनुसार आत्मा अल्पज्ञ है और सर्वज्ञ परमात्मा की कृपा के बिना परम ज्ञान नहीं हो सकता और बिना परम ज्ञान के मुक्ति संभव नहीं है।
ब्राह्मण परम्परा और श्रमण परम्परा परस्पर विरोधी परन्तु मुक्ति के सम्बंध में अतिप्राचीन दार्शनिक दृष्टिकोण हैं।

© अजीत कुमार, सर्वाधिकार सुरक्षित।

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