बुधवार, 2 अक्टूबर 2024

सत और असत में अंतर

सत का अर्थ है जो वस्तु या पदार्थ अनादि काल से है और जिस में कोई परिवर्तन नहीं होता। भारतीय दर्शन के अनुसार सत तीन प्रकार का संभव है

प्रथम प्रकृति, दूसरा जीवात्मा और तृतीय परमात्मा। इन तीनों की सत्ता हमेशा अनादि काल से है और रहेगी और इनमें किसी तरह का कोई परिवर्तन नहीं होता।


मूल प्रकृति से मिलकर प्राकृतिक वस्तुएं बनती है। जितनी भी प्राकृतिक चीजें हैं वह सब प्रकृति से ही बनती है। आत्मा और परमात्मा भी अक्षय, नित्य व शाश्वत हैं। इनका कोई बनाने वाला नहीं है। जब निर्माण ही नहीं है इनका नाश भी सम्भव नहीं है। ये तीनों ही अनादि अनश्वर हैं। अनादि का अभिप्राय यह है कि सृष्टि का कोई प्रारंभ नहीं। एक सृष्टि के प्रलय के बाद पुनः सृष्टि होती है अतः सृष्टि प्रवाह से अनादि है और ये तीनों सत्ताएं भी नित्य व शाश्वत हैं।
इसके विपरीत असत से अभिप्राय उन पदार्थों और वस्तुओं से है जिसका नाश और निर्माण होता रहता है। उदाहरण के लिए सूरज चांद तारे शरीर मकान यह सारे बनते बिगड़ते रहते हैं। इस तरह की चीजों को असत कहा जाता है।
वेद परमात्मा की तरह नित्य सत्ता है परन्तु ध्यातव्य है कि वेदज्ञान परमात्मा से ही निसृत है।

© अजीत कुमार, सर्वाधिकार सुरक्षित।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें