बुधवार, 2 अक्टूबर 2024

क्या दशावतार से चार्ल्स डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत की पुष्टि होती है?

आइए देखते हैं सच क्या है। कुछ लोगों ने मनगढ़ंत विचार फैला दिया की जिस प्रकार विकासवाद सिद्धांत से जलचर से उभयचर और बाद में स्थलीय जीवों के विकास की बात कही जाती है, ठीक उसी तरह दशावतार द्वारा यह तथ्य आलंकारिक रूप में व्यक्त हुआ है। मीनावतार के बाद कच्छपावतार इत्यादि।

सच तो यह है कि दशावतार से चार्ल्स डार्विन के विकासवाद सिद्धांत की पुष्टि करने वाले अपने अवतारों की ही निंदा कर रहे हैं।


अगर हम विकास की बात करें तो विकास का अर्थ क्या होता है यही कि जिसमें पूर्णता नहीं है विकास करता है। पूर्णता का अभाव है तभी तो विकास कर रहा है।

 विकास के इस शर्त को ध्यान में रखते हुए देखा जाए तो प्रश्न उठता है यह क्या परशुराम और राम अपूर्ण थे और उनसे ज्यादा योग्य कृष्ण थे? क्योंकि कृष्ण का अवतार राम और परशुराम के बाद में हुआ था। इसी तरह बुद्ध का अवतार कृष्ण के बाद हुआ था, तो क्या बुद्ध राम से ज्यादा श्रेष्ठ है। ऐसा सोचना भी मूर्खतापूर्ण है। इस तरह राम और कृष्ण की तुलना करना उनकी निंदा करने के समतुल्य ही है।


भला किसी कथा कहानी से कोई सिद्धांत विज्ञान सिद्ध थोड़े होता है। कथा कहानियों से तो हम कुछ भी साबित कर सकते हैं। गलत को भी सही साबित कर सकते हैं और सही को भी गलत साबित कर सकते हैं। इसलिए कथा कहानियों का विज्ञान में कोई महत्व नहीं है। 

थोड़ा सा अक्ल लगाने से ही यह स्पष्ट हो जाता है कि चार्ल्स डार्विन के सिद्धांत को विकास से जोड़ना मूर्खतापूर्ण विचार है।

ऐसे भी अवतारवाद कपोलकल्पित है जिसका खण्डन स्वार्थीजन द्वारा कभी नहीं किया जाता क्योंकि इससे उनके हितो का नुकसान होता है। सत्य यह है कि ईश्वर का कभी अवतार होना सम्भव ही नहीं है क्योंकि अजन्मा, निर्विकार, सर्वत्र व्यापक परमात्मा का ससीम शरीर में आना सम्भव नहीं है।

© अजीत कुमार, सर्वाधिकार सुरक्षित।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें