शनिवार, 21 अगस्त 2021

आत्मा मृत्यु के समय भी शरीर नहीं छोड़ना चाहे फिर उसे शरीर से कौन छुड़ाता है?

पतंजलि मुनि के योग दर्शन में आत्मा का मृत्यु से भय को अभिनिवेश कहा गया है। अभिनिवेश से अभिप्राय जीवात्मा का मृत्यु से भय है। ऋषियों का यह मानना है कि जीवात्मा को मृत्यु का भय सताता है और जीवात्मा स्वयं शरीर को नहीं त्यागना चाहता। यह क्लेश है। इसी कारण मृत्यु की घड़ी अत्यंत दुखकारी होती है और मरते समय जीवात्मा को दुख होता है ऐसा शास्त्रों में कहा गया है।

यह तो एक स्वयंसिद्ध सत्य है की कोई भी मनुष्य या जीवधारी स्वयं नहीं मरना चाहता लेकिन कभी ना कभी मरता अवश्य है। अब मरना दो तरीके से है— या तो प्राकृतिक नियमानुसार शरीर के पुराने हो जाने पर जीवात्मा शरीर त्याग देता है अथवा किसी आकस्मिक कारण से अकाल मृत्यु को प्राप्त होता है। परंतु कारण जो भी हो यह स्वयं अनुभव की बात है कि कोई व्यक्ति खुद नहीं मरना चाहता। 

आत्महत्या की स्थिति में भी जीवात्मा मरना नहीं चाहता। वस्तुतः दुखों से छुटकारा पाना चाहता है, लेकिन सामान्य तौर पर शरीर से आत्मा का निकलना स्वयं द्वारा नहीं होता बल्कि उस आत्मा को निकालने वाला परमात्मा है। परमात्मा के सारे नियम बने बनाए हैं और शरीर भी परमात्मा के बनाए हुए नियमों से चलता है। 

जब शरीर जीर्ण हो जाता है तो जीवात्मा शरीर से निकल जाता है और जीवात्मा शरीर से निकलकर वायु में गमन करता है। "यमेन वायुना" वायु को ही वेद में यम भी कहा गया है। जब यह कहते हैं कि उस व्यक्ति को यमराज ले गया, इसका अर्थ यह है कि उसकी आत्मा शरीर से निकल कर वायु में स्थित हो गई। पुनः यह आत्मा अन्न जल इत्यादि के माध्यम से होते हुए शरीर में प्रवेश करता है, ऐसा उपनिषदों में वर्णित है। 

आत्मा का अर्थ गमन करना है। एक शरीर से दूसरे शरीर में आवागमन के कारण जीव को आत्मा कहते हैं।
जीवात्मा और परमात्मा दो अलग सत्ताएं है।

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