सोमवार, 30 अगस्त 2021

हिंदू समाज और जातपात के वाहक

मनुस्मृति के अनुसार वैदिक काल के ब्राह्मण के लक्षण और ब्रह्मकर्म इस प्रकार लिखा हुआ है:-

शमोदमस्तपः शौचम् क्षांतिरार्जवमेव च ।
ज्ञानम् विज्ञानमास्तिक्यम् ब्रह्मकर्म स्वभावजम् ।।

भावार्थ- चित्त पर नियन्त्रण, इन्द्रियों पर नियन्त्रण, शुचिता, धैर्य, सरलता, एकाग्रता तथा ज्ञान-विज्ञान में विश्वास।

ब्राह्मण क्या जन्म से होते हैं?

जन्मना जायते शूद्रः संस्कारात् भवेत् द्विजः। वेद-पाठात् भवेत् विप्रः ब्रह्म जानातीति ब्राह्मणः।

भावार्थ:- जन्म से मनुष्य शुद्र होता है परंतु संस्कार से द्विज अर्थात ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य होता है। वेद के पठन-पाठन से विप्र और जो ब्रह्म को जानता है वह ब्राह्मण कहलाता है।

आधुनिक तथाकथित ब्राह्मण

मनु महाराज के बताए ब्राह्मण के लक्षणों के विपरीत ढोंगी, ब्रह्मविद्या से रहित, वेदविरुद्ध सिद्धान्तों में दृढ़ और पाखण्डपूर्ण आचरण करने वाले आधुनिक तथाकथित ब्राह्मण को पोप समझना चाहिए। ज्ञान विज्ञान की जगह अंधविश्वास को मानने और मनवाने वाले पाखंडी ब्राह्मणों को गांव में बाभन कहते हैं और अंग्रेजी में पोप कह सकते हैं।

आधुनिक तथाकथित ब्राह्मण के लक्षण

इनकी पहचान यह है कि यह संस्कृत के श्लोकों को रट कर कंठस्थ कर लेते हैं और अपने को स्वघोषित विद्वान कहते हैं। इसके लिए नाना प्रकार के छद्म कर्मो का उपाय करते हैं। लोकप्रतिष्ठा लोलुपता और धनसंग्रह लोलुपता मुख्य लक्षण है। मठ, मंदिरों पर कब्जा मुख्य उपाय है। स्वयं सत्य का आचरण नहीं करते परन्तु लोगों को उपदेश देते हैं।

जन्म से सभी शुद्र हैं जबकि संस्कार ग्रहण कर द्विज बनते हैं। यह मनु महाराज का कथन है। लेकिन नाना नवीन क्लिष्ट मत और जातपात फैला कर हिन्दूसमाज को इन पोंगा पंडितों ने बर्बाद कर दिया है। आज भी इन ब्राह्मणवादी मानसिकता के कारण हिन्दू समाज टूट रहा है।

प्रसव से समान जीव एक जाति के माने जाते हैं, अतः मनुष्य एक जाति है जबकि ज्ञान कर्म में विशिष्टता प्राप्त कर कोई भी किसी भी वर्ण का हो सकता है। जन्मना जायते शूद्रः संस्कारात् भवेत् द्विजः। जन्म से मनुष्य शुद्र और संस्कार के पश्चात द्विज कहलाता है।

निश्चलानंद सरस्वती जैसे मठाधीश आम जनमानस को संस्कृतनिष्ठ हिंदी बोल कर और गलत रूपक प्रस्तुत कर अर्थ का अनर्थ करते हैं और जातपात फैलाने में इनका बहुत बड़ा योगदान है। यही आधुनिक ब्राह्मण के सर्वोत्तम उदाहरण हैं। यह वर्ण व्यवस्था को जन्म आधारित सिद्ध करने के लिए येनकेन तर्क देते हैं।

आर्यसमाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती ने इन पोंगा पंडितों का घोर विरोध किया था। विशेष अध्ययन के लिए सत्यार्थ प्रकाश के ग्यारहवें समुल्लास का अध्ययन करें। यह पूरा समुल्लास ही हिन्दू समाज में फैले पोंगापंथ के कारण और इतिहास को प्रकाशित करता है। भारत में जातपात और अस्पृश्यता महापाप है क्योंकि यह मिथ्याभिमान मानवताविरुद्ध पाप है। इसके कारण हिन्दूसमाज को तोड़ने में विधर्मी सदैव तत्पर हैं।

यह निश्चलानंद सरस्वती करपात्री महाराज के शिष्य हैं जो हिन्दू से मुस्लिम बने लोगो के घर वापसी के घोर विरोधी रहे हैं। आदि शंकराचार्य ने किस ग्रन्थ में लिखा है कि ये अपने नाम मे शंकराचार्य शब्द का प्रयोग करें। निश्चलानंद सरस्वती को यह बात भी बताना चाहिए।

© अजीत कुमार, सर्वाधिकार सुरक्षित।



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