शनिवार, 27 नवंबर 2021

स्वप्न और सत्य

वासना
- by Shrishesh
वह प्यार थी ना विश्वास थी मदनोत्सव की शाम जलाई गई आग थी इंद्रियश्रेष्ठ अनिमेष निहारा स्वप्नप्रिया कांचनतन कामुकरागिनी वासना मतवालिनी मन मन की अभिलाषिनी स्वप्नप्रिया मात्र हृदय नहीं इंद्रिय हारा क्षण-क्षणिक वासना का मारा कामकला अभिलाषा प्यासा स्वप्न चित्त झरोखे से झांका। ध्यान की ज्योति में स्वप्न-सत्य पहचाना उत्तर बनकर उतर गया मौन सत्य शिव बांका। (अतीत के झरोखों से)
© अजीत कुमार, सर्वाधिकार सुरक्षित।

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