अन्त्येष्टि’ कर्म उस को कहते हैं कि जो शरीर के अन्त का संस्कार है, जिस के आगे उस शरीर के लिए कोई भी अन्य संस्कार नहीं है। इसी को नरमेध, पुरुषमेध, नरयाग, पुरुषयाग भी कहते हैं।
भस्मान्तं शरीरम्। —यजुः अ॰ 40। मं॰ 15॥
निषेकादिश्मशानान्तो मन्त्रैर्यस्योदितो विधिः॥ —मनु॰
अर्थ—इस शरीर का संस्कार (भस्मान्तम्) अर्थात् भस्म करने पर्यन्त है॥1॥
मृतक को जलाया नहीं जाता बल्कि उसका दाह संस्कार किया जाता है। जलाने हेतु किसी निश्चित विधि की जरूरत नहीं परन्तु दाह संस्कार एक पद्धति है।
मृतक के दाह संस्कार के निम्न लाभ हैं—
- एक छोटे से जगह/जमीन पर लाखों लोगों का दाह संस्कार सम्भव है। यह जगह की बचत करता है। कब्रिस्तान बनाने और उसके रख रखाव के खर्च अलग। जमीन के स्वामित्व के सम्बंध में कानूनी मुकदमे अलग।
- सम्प्रदाय विशेष के नाम पर अलग अलग तरह के कब्रिस्तान। ईसाई और इस्लाम मत के कब्रिस्तान अलग अलग होते हैं। कुछ कब्रिस्तानों में दूसरे मत के अनुयायी अपने शव को दफना नहीं सकते।
- पूरे भूलोक के शवों का दाह एक परिमित सीमित स्थान पर सम्भव है परन्तु कब्र बनाने की परम्परा से यह सम्भव नहीं है। उपजाऊ भूमि पर कब्र बनाने से जमीन का उपयोग नहीं हो पाता। लाखों एकड़ जमीन कब्रिस्तान बनाने से अनुपयोगी हो चुकी हैं।
- कब्रिस्तानों के रखरखाव के लिए चौकीदार रखने पड़ते हैं अन्यथा लाशों की चोरी और अन्य दुष्कर्म की संभावना बनी रहती है।
- कब्रों की समय समय पर मरम्मत के खर्चे भी होते हैं जैसे ईट या सीमेंट से कब्रों को पक्का करना, अन्यथा कच्ची मिट्टी में गाड़े गये लाशों को कुत्ते सियार जैसे जानवर खोदकर खा जाते हैं।
- कब्रों मजारों के कारण अनावश्यक अंधविश्वास में अकर्मण्यतावश व्यक्ति मजारों पर माथा करते हैं। पीर पैगम्बर के मजार शव गाड़ने के फल हैं।
- दाह संस्कार में घृत और वायु शुद्धिकारक पदार्थों का प्रयोग किया जाता है। उन पदार्थो के प्रयोग से न केवल वायुशामन होता है अपितु हानिकारक जीवाणुओं का नाश होने से स्वास्थ्य रक्षा होती है। वायुचक्र सुधार होने से वृष्टी के दोष जैसे अतिवृष्टि अल्पवृष्टि अकाल से रक्षा होती है। दफनाने की प्रथा प्रचलित होने से ये लाभ नष्ट हो गये। आधुनिक युग में भी मच्छरों व कीटपतंगो के नाश हेतु फ्यूमिगेशन का प्रयोग होता है। यह प्राचीन विद्या का ही रूप है।
- कब्रिस्तानों का वातावरण भयकारक होता है। भूत प्रेत जैसे कल्पित विचारों का बढ़ावा कब्रिस्तानों से जुड़ा हुआ है। संसार के सबसे प्राचीन ग्रन्थ वेद में दाह संस्कार की संस्तुति है। यह वैदिक और वैज्ञानिक पद्धति है।
- मृतक के शरीर का दाह कर देने से मृतात्मा और मृतक के परिजनों का शरीर से मोह भंग होता है। मुसलमान या ईसाइयों की तरह आपको हर बार कब्रिस्तान पर जाकर फूल चढ़ाने या कब्र की सफाई करने जैसे कार्य को नहीं करना होता है।
ऐसे अनेक लाभ गिना सकते हैं।
लेखक अजीत कुमार
http://www.aryagan.org/pdf/sanskarvidhi/Sanskarvidhi-Antyeshthi-Sanskar(16).pdf
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