1 जनवरी को नववर्ष मानना भारतीयों के लिए न केवल अपमान की बात है अपितु अंधविश्वास को बढ़ाने वाला भी है अगर यह बात नहीं समझ में आई तो आगे लेख पढ़ें।
इस देश को सैकड़ो साल मुसलमानों और ईसाइयों ने गुलाम बनाया। हजारों लाखों स्त्रियों के सतीत्व का हरण हुआ। पुरूष मारे गए। सहस्त्रों करोड़ के धन सम्पत्ति लूट लिए गए उससे ज्यादा के नष्ट हुए। किसके कारण। ईसाइयों और मोहम्मदन मत के कारण। तो हम नववर्ष 1 जनवरी को क्यों मनाते हैं?
सबसे बड़ी बात हम अंधविश्वास को बढ़ावा दे रहे हैं। वह क्यों।
25 दिसंबर किस लिए है इसका भारतीयों से क्या संबंध है जो हम 25 दिसंबर को क्रिसमस मनाते हैं। वस्तुत 25 दिसंबर को ईसा मसीह का जन्म हुआ था और उसी की याद में क्रिसमस पर्व 25 दिसंबर को मनाया जाता है इसका भारत की सभ्यता और संस्कृति से कोई दूर तक लेना देना नहीं है।
दूसरी बात ईसा मसीह का जन्म जिस तरीके से हुआ उस तरीके से दुनिया में कोई इंसान पैदा ही नहीं होता। कोई भी व्यक्ति बिना स्त्री पुरुष के संसर्ग के जन्म नहीं लेता है। यह सृष्टि नियम के विरुद्ध है कि कोई स्त्री बिना किसी पुरुष से संपर्क किए बच्चा जन्म दे दे। यह पूरी तरह अंधविश्वास को बढ़ाने वाला है और इस विचार को ईसाई और मोहम्मदन दोनों ही मानते हैं क्योंकि कुरान में भी ईसा मसीह को इस रूप में स्वीकार किया गया है जिस रूप में बाइबल में है। दोनों ही मत यह मानता है की कुंवारी मरियम के गर्भ से ईसा मसीह का जन्म मरियम के शर्मगाह में परमात्मा के फूंक मारने से हुआ था। क्या परमात्मा का यह कार्य है कि वह किसी स्त्री के शर्मगाह में फूंक मारे यह बुद्धिमान व्यक्ति को सोचने विचारने की बात है। कल कोई स्त्री अपने पति से यह बात कहे कि मेरा जो बच्चा जन्म लिया है वह परमात्मा के फूंक मारने से हुआ है तो क्या उसका पति विश्वास कर लेगा? विचारणीय है। यही बात कुरान में सुर अंबिया आयत 91 में लिखा हुआ है। 1 जनवरी को ईसा मसीह का खतना हुआ था और उसे खतने के जश्न में 1 जनवरी को हैप्पी न्यू ईयर मनाया जाता है भला कौन सा हिंदू अपने घर में खतना करवाता है कि वह 1 जनवरी की खुशी मनाएं यह भी हिंदुओं को विचार करना चाहिए।
इसी अंधविश्वास के कारण पूरी दुनिया में ईसाइयत ने अंधविश्वास का साम्राज्य खड़ा किया यह तो शुक्र मनाओ कि पुनर्जागरण हुआ और यूरोप में लोगों ने चर्च और बाइबिल का विरोध करना शुरू किया। आज की सभ्यता संस्कृति की प्रगति का कारण चर्च नहीं है बल्कि चर्च और ईसा मसीह के ऐसे अंधविश्वास के विरोध का परिणाम है। तो भारत में हम इस तरह के अंधविश्वास को क्यों बढ़ावा दे रहे हैं इसका मुख्य कारण है कि यूरोप में जब चर्च का प्रभाव घट गया तो वह भारत जैसे देशों में अपने प्रभाव को बढ़ाकर पाखंड को बढ़ावा देना चाहता है और चर्च की सत्ता को भारत में स्थापित करना चाहता है बहुत हद तक उसमें उसे सफलता भी मिली है।
हिंदुओं में थोड़ी सी भी वैज्ञानिकता और अपनी सभ्यता संस्कृति के प्रति सम्मान गौरव की भावना है तो तत्काल इस तरह के हैप्पी न्यू ईयर पर शुभकामनाएं देने की आदत छोड़ देनी चाहिए।
हमारा नव वर्ष तो अपने वैदिक पंचांग के अनुसार ही होना चाहिए।
© अजीत कुमार, सर्वाधिकार सुरक्षित।
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