गुरुवार, 28 फ़रवरी 2013

मैं कौन हूँ?

सापेक्ष का अंत
- by Shrishesh
मैं कौन हूँ? मैं क्या हूँ? यह नचिकेत प्रश्न है। जो समझ गया इसका उत्तर वह सदैव प्रसन्न मन है। तन-मन को सबल बना कर बुद्धि विवेक जगा कर इस महत प्रश्न का शोध करो। वैराग्य ज्ञान को पा कर चंचल वृतियों का निरोध करो। मैं कौन हूँ? मैं क्या हूँ? यह काल क्षेत्र की माया है। जड़ चेतन को भरमाता है बुद्धि पार न पाता है। मैं कौन हूँ? मैं क्या हूँ ? यह भेद तभी खुल सकता है जब काल-क्षेत्र का पटाक्षेप हो माया का निर्वाण हो सापेक्ष का अंत हो और हृदय निर्विकार हो। सावधान !!! असंभव मुझे है खोजना खोजन की वस्तु नहीं। अस्तित्व हूँ अनुभव करो मन इन्द्रिय यन्त्र हटा कर, या अनुभव करो इस यंत्र से भी तन-मन-यन्त्र प्रबल बना कर। श्रीशेष (अतीत के झरोखों से)
© अजीत कुमार, सर्वाधिकार सुरक्षित।

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