नादानी
ऐ फूल मुसकरा रहे हैं
इंसानों की नादानी पर
यूँ तोड़ लेते हैं माली
पाषाण देवो पर चढाने को
जिनसे मिलता नहीं कुछ
बस छीन जाती है हरियाली
फूल खिलते है गगन को
सुवासित बनाने के लिए
धरती को सुन्दर
आलय बनाने के लिए
फूल दुर्गन्ध सोख सोख
सुगन्धित जहाँ बनांते हैं
प्राण वायु की वृद्धि कर
तन मन स्वस्थ बनाते है ।
पर हाय ! मानव
तेरी मननशीलता खो गयी
अहम् और प्रदर्शन में
बुद्धि विवेक सो गई
चाहता है पर्यावरण शुद्ध हो
तो पाषाण मूर्तियों को पिघलाओ
और ऐसा न हो सके तो
उन्हें पहाड़ों पर फेंक आओ
बस फिर लौट आएगी हरियाली
मुफ्त शत प्रतिशत निःशुल्क !!
(अतीत के झरोखों से)
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