क्रांति
कुछेक क्षणान्तर में,
अशांत हो गए दो जन,
प्रेमालाप करते करते ।
टूट पड़े एक दुजे पर,
व्यंग्य वक्रोक्ति,
उपमा-उपमेय के उपालम्भ से,
चीख-चीत्कार से,
गालियों की बौछार से,
और अशांत करते-करते
बेचारे ! स्वयमेव अशांत हो गए।
भृकुटि उठाते-गिराते,
हाथ नचाते-घुमाते,
पानी पी कर लड़ते-लड़ते,
बेचारे कंठ
आकंठ हो गए ।
कुछेक क्षणान्तर ने,
दो जन को
चिंतन के निमित्त मजबूर किया
अवकाश की क्रांति से
बाह्य भ्रान्ति निर्मूल है
तत्पश्चात,
एक नीरवता विद्यमान है
सूक्ष्म ब्रह्माण्ड के
आभ्यांतर एवं बहिः ।
किन्तु,
इस नीरवता में भी
एक झंकार है
जो सप्त स्वर से भिन्न है
श्रीशेष
(अतीत के झरोखों से)
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