रविवार, 18 मई 2014

हर रोज नई मंज़िल है

अरमान
- by Shrishesh
हर रोज नई मंज़िल है हर रोज़ नए अरमान हर रोज मौत की हसरत है हर रोज नये दास्तान हर हार के साथ जन्मती है नई आशा की सौगात तारों के अरमान चमकते हैं हर अमावस की रात घनघोर घटा जब छाती है सूरज भी छिपा जाता है बर्षा के बाद छिटकती है नभ में सतरंगी पैगाम । (अतीत के झरोखों से)
© अजीत कुमार, सर्वाधिकार सुरक्षित।

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