हक़ीक़त
ज़िन्दगी में आदर्श
इतने ऊँचे मत करो
कि साँस घुटने लगे
उड़ान इतनी मत भरो
कि ज़मीं छुटने लगे।
स्वप्नों को नींद में ही आने दो
दिवा स्वप्न मत देखो
सूरज की रौशनी है फैली
और हक़ीक़त है
बबूल के पेड़ जैसी।
काँटों को फूल कह कर
मन बहला सकते हो
पर इन काँटों से क्या
फूल की सुगन्ध पा सकते हो?
आग में आग है
और पानी में पानी है
ज़िन्दगी तो सुख दुःख की कहानी है
सुख को दुःख छलेगा
यह बात पुरानी है।
(अतीत के झरोखों से)
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