शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2016

सरस्वती वन्दना

विवेक
- by Shrishesh
माँ ऐसा वरदान दो प्राणों को प्रज्ञा दान दो अज्ञान का बंधन कट जाये विभ्रम का बादल छँट जाये। विद्या विवेक का हो विलास सत्य सुगन्धि की हो तलाश दे कर जग को रस विज्ञान कर दो जग में नूतन विहान। लोभ मोह माया का जाल कटे अहं तत्व महाविकराल मिटे रूढ़ि जड़ता अज्ञान तिमिर घुल जाये पल में ओस सदृश भर दो मन में ऐसी उर्मी बन जाये जीवन यतिधर्मी। (अतीत के झरोखों से)
© अजीत कुमार, सर्वाधिकार सुरक्षित।

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