जिन्दगी का सफर
जिन्दगी एक सफर है
सफर बस सफर |
चल रहा मंजिलों से
हो कर बेखबर |
जिंदगी चल रहा
बस डगर दर डगर,
खेले खेल ऐसा
मानो हो जादूगर |
जिंदगी को नहीं है
इतनी भी खबर,
कहाँ उसकी मंजिल
कहाँ है बसेरा
कहाँ उसकी संध्या
कहाँ है सबेरा |
लगे ठोकरें तो संभलना सिखाये
नये राग में वो सदा गीत गाये |
जिंदगी एक पहेली जिंदगी एक जुआ
कभी एक वरदान कभी एक बददुआ |
बहारों का मौसम है जिंदगी
खिजाओं का आलम भी है जिंदगी |
नर के निमित जिंदगी है अधूरी कविता
सम्पूर्णता को जाने एक मात्र सविता।
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