बुधवार, 2 अक्टूबर 2024

क्या फलित ज्योतिष पर विश्वास करना चाहिए

मनुष्य का अपने भविष्य को जानने के प्रति जिज्ञासा होती है और इसी जिज्ञासा को शांत करने के लिए फलित ज्योतिष का विकास हुआ। अब मनुष्य में इच्छाओं की कोई कमी नहीं। इच्छाओं की पूर्ति के नाम पर पशुबलि और छद्मग्रन्थों की रचना भी हुई।

फलित ज्योतिष की सत्यता को समझने के लिए मैंने कीरो और नारायण दत्त श्रीमाली की पुस्तक इत्यादि का अध्ययन भी किया। इसके अतिरिक्त न्यूमैरोलॉजी और टैरो कार्ड को भी समझने की कोशिश किया और पाया की इन ग्रंथों में कोई स्पष्ट सिद्धांत नहीं है अपितु अनेक तरह से भ्रमित करने वाले शब्दों के प्रयोग द्वारा आम मनुष्य को भ्रम में डाला जाता है। मैंने कई सारे लोगों के साथ इसका परीक्षण भी किया। अधिकांश परिस्थितियों में मैंने पाया कि मनोवैज्ञानिक कारणों से भविष्यफल जानने के लिए व्यक्ति उत्सुक होता है और कई सारे लोग तो मेरी भविष्यवाणी से बहुत प्रभावित भी हुए। अब सच क्या है, यह मेरे लिए स्पष्ट था।

हस्तरेखा और भविष्यवाणी का सच या झूठ होना पूरी तरह मनोविज्ञान पर आधारित है। कोई भी हस्तरेखा विशेषज्ञ और फलादेश करने वाला अपना भविष्य तो बता नहीं सकता लेकिन दूसरे का भविष्य ऐसे बताता है मानो स्वच्छ दर्पण में अपना चेहरा देख रहा हो। फलित ज्योतिष का कोई स्पष्ट सिद्धांत नहीं है। अगर कोई शब्दो को गूंथना जानता है तो वह एक सफल फलितज्योतिषी बन सकता है।

ऐसा सभी विद्वानों का मानना है और जिन खगोल शास्त्रियों का नाम फलित ज्योतिष में लिया जाता है, खगोल विद्या के लिए प्रसिद्ध है ना की फलित ज्योतिष के लिए। उदाहरण के लिए वराह मिहिर आर्यभट्ट इत्यादि।

और जो यह कहते फिरते हैं कि सभी चीजों का एक दूसरे पर प्रभाव होता है तो उनसे प्रश्न है कि क्यों किसी घटना की व्याख्या के लिए संसार की सभी चीजों को जिम्मेदार नहीं जाता है। अब कोई किसी को चाकू मार दे तो चाकू बनाने वाले को सजा देते हैं अथवा कातिल को। कार्य कारण की सत्य व्याख्या के अभाव में पढेलिखे लोग भी ज्योतिष के चक्कर में पड़ जाते हैं।

पुरुषार्थ प्रारब्ध से मुख्य है क्योंकि पुरुषार्थ से ही प्रारब्ध बनता और बिगड़ता है। इस विचारधारा के त्याग से ही मनुष्य भाग्यवादी होकर पुरुषार्थ हीन हो जाता है और फलितज्योतिषी के चक्कर में लगा रहता है।

नवम्बर २०१९

© अजीत कुमार, सर्वाधिकार सुरक्षित।

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