अपना यहां पर कोई नहीं है
सांझ हुई और सूरज डूबा
चारों तरफ अंधेर हुई!
रात हुई और तारे टूटे
दिल में कहीं पर शोर हुई!
अंधियारे के इस आंगन में
बारिश भी घनघोर हुई!
अपना यहां पर कोई नहीं है,
अपने भी अपने नहीं!
दिन के उजाले में जो दिखते हैं
रात अंधेरे में छपते हैं!
संप्रति के अपने भी
आगत के सपने बनते हैं!
दिल ही निज हमदर्द है
शेष जहां बेदर्द है!
सच मायने में कुछेक छोड़
शेष जहां कमज़र्फ़ है!!
(अतीत के झरोखों से)
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